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नज़्म
आज की रात
देखना जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आवारा
जी में आता है कि अब अहद-ए-वफ़ा भी तोड़ दूँ
उन को पा सकता हूँ मैं ये आसरा भी तोड़ दूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
रुख़्सत ऐ हम-सफ़रो शहर-ए-निगार आ ही गया
ख़ुल्द भी जिस पे हो क़ुर्बां वो दयार आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
शेर
इश्क़ का ज़ौक़-ए-नज़ारा मुफ़्त में बदनाम है
हुस्न ख़ुद बे-ताब है जल्वा दिखाने के लिए